
CONTECT NO. - 8962936808
EMAIL ID - shouryapath12@gmail.com
Address - SHOURYA NIWAS, SARSWATI GYAN MANDIR SCHOOL, SUBHASH NAGAR, KASARIDIH - DURG ( CHHATTISGARH )
LEGAL ADVISOR - DEEPAK KHOBRAGADE (ADVOCATE)
धर्म संसार / शौर्यपथ /कल वट सावित्री का व्रत है। इसको लेकर राजधानी पटना के बाजारों में गुरुवार को महिलाएं पूजन सामग्री खरीदतीं नजर आईं। हिंदू धर्म में महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए वट सावित्रि व्रत रखती हैं। जो स्त्री इस व्रत को सच्ची निष्ठा से रखती है उसे न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि उसके पति पर आई सभी परेशानियां भी दूर हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सावित्री अपने पति के प्राणों को यमराज से छुड़ाकर ले आई थीं। अत: इस व्रत का महिलाओं के बीच विशेष महत्व बताया जाता है। इस दिन वट (बड़, बरगद) का पूजन होता है। इस व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगलकामना से करती हैं। इस दिन सुबह घर की सफाई कर स्नान करें। इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें। बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें। ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें।
इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें। इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें। इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें। अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें। पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें। जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें। भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें।
जीना इस्सी का नाम /शौर्यपथ / अमेरिका के न्यू जर्सी प्रांत में एक छोटा-सा नगर है मेंदम बोरो। छोटा, मगर बहुत प्यारा। एक दशक पहले तक वहां महज पांच हजार लोग बसा करते थे। सुविधा, शांति और सुकून का आलम यह कि अमेरिकियों को यहां बसने वाले लोगों से रश्क होता है। इसी नगर में स्टीव और नैंसी डॉयने के घर नवंबर 1986 में एक बेटी पैदा हुई। नाम रखा गया मैगी। पिता स्टीव को तो जैसे उनके ईश्वर ने हजार नेमतों से नवाज दिया था। फूड स्टोर में मैनेजर की अपनी नौकरी उन्होंने इसलिए छोड़ दी, ताकि उनकी गुड़िया की परवरिश में कोई कमी न रहे, अलबत्ता मां रियल एस्टेट क्षेत्र में नौकरी करती रहीं।
घर का कोना-कोना स्नेह और अपनत्व से आबाद था। मैगी अपनी दोनों बहनों के साथ उम्र की सीढ़ियां चढ़ती गईं। साल 2005 का वाकया है। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, और आगे ग्रेजुएशन की शुरू होने वाली थी। अमेरिकी शिक्षा-व्यवस्था अपने बच्चों को इन दोनों के बीच ‘गैप-ईयर’ का एक अवसर देती है, ताकि वे इस अंतराल में देश-दुनिया को देखें-समझें या कोई और अनुभव बटोर सकें।
मैगी उस समय 19 साल की थीं। उन्होंने ‘लीपनाऊ’ संगठन के साथ यात्रा करने का फैसला किया। वह पहले ऑस्ट्रेलिया गईं, फिर फिजी होते हुए भारत पहुंचीं। उन्होंने अपनी योजना में एक सेमेस्टर को भारतीय अनाथालय के अनुभव से भी जोड़ रखा था। यहीं पर उनकी मुलाकात नेपाली बच्चों से हुई। वर्षों के गृह युद्ध के शिकार ये यतीम-गरीब बच्चे किसी के साथ भारत चले आए थे। इन बच्चों के दिल से मैगी के दिल का तार जुड़ गया। बच्चे इसरार करते- दीदी, हमारे देश चलो, हमारे गांव भी देखो न।
नेपाल में हालात कुछ सुधरा, तो एक युवती के साथ मैगी नेपाल निकल पड़ीं। वह हिमालय की गोद में बसा बहुत खूबसूरत गांव था। उसके पास से ही एक नदी बहती थी। कुदरत ने इस भूभाग पर अपना भरपूर प्यार लुटाया था, मगर उसे इंसानी फितरतों की नजर लग गई थी। शाही सेना और बागियों की भिड़ंत के जख्म गांव में जगह-जगह से रिस रहे थे। झुलसे हुए पूजा स्थल और मकानों पर जबरन कब्जा इसके उदाहरण थे। जिस लड़की के साथ मैगी उस गांव तक पहुंचीं, उसके घर को भी बागियों के शिविर में तब्दील कर दिया गया था।
मैगी ने पढ़ा था कि जब भी कहीं जंग छिड़ती है या अराजकता फैलती है, तो उसका कहर सबसे ज्यादा औरतों व बच्चों पर टूटता है। यह सब एक नंगे सच के रूप में उनके सामने था। गांव के ज्यादातर बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। कैसे जाते? गुरबत ने उनके मां-बाप को यह सोचने की मोहलत ही कहां दी थी? मैगी ने देखा था कि बच्चे शहर में हथौड़ा पकडे़ पत्थर तोड़ रहे थे।
यह सब देख उनका युवा मन आहत था। तभी एक रोज उनकी मुलाकात हेमा से हुई। महज सात साल की मासूम बच्ची का बचपन पत्थर तोड़ने और कचरा बटोरने में बीता जा रहा था। वह बहुत प्यारी बच्ची थी। मैगी जब भी उसको देखतीं, वह पूरी गर्मजोशी से नेपाली में बोलती- नमस्ते दीदी! मैगी कहती हैं- ‘मैं उसमें खो जाती थी। मेरी अंतरात्मा मुझसे कुछ कह रही थी। मैं जानती थी कि दुनिया में करोड़ों हेमाएं हैं। सोचती, मैं सबके लिए भले कुछ न कर सकूं, पर क्या इस एक की जिंदगी भी नहीं बदल सकती?’
मैगी हेमा को लेकर स्कूल गईं और उसकी फीस के तौर पर सात डॉलर जमा किए, उन्होंने हेमा के लिए स्कूल ड्रेस, किताबें और दूसरे जरूरी सामान भी खरीदे, ताकि वह बगैर किसी एहसास-ए-कमतरी के स्कूल में पढ़ सके। इस काम से मैगी को एक अजीब-सी खुशी मिली। फिर तो जैसे उन पर परोपकार का नशा सवार हो गया। सोचा, ‘अगर मैं एक बच्ची की मदद कर सकती हूं, तो पांच की क्यों नहीं?’ फिर तो यह आंकड़ा बढ़ता चला गया।
वह बेचैन हो उठीं। उन्हें अनाथ बच्चों की खातिर एक पनाहगाह, उनके भोजन, किताब-कॉपी, पोशाक आदि के लिए पैसे की दरकार थी। मैगी ने हाई स्कूल की पढ़ाई के दौरान पार्टटाइम काम से बच्चों की देखभाल करके पांच हजार डॉलर जमा किए थे। उन्होंने अपने घर फोन करके माता-पिता से वह राशि मंगवाई। हजारों किलोमीटर दूर बैठे मां-बाप कुछ चिंतित तो हुए, मगर बेटी के जुनून को देखते हुए उन्हें मैगी का साथ देना ही मुनासिब लगा। इसके बाद तो मैगी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
उनकी जिंदगी को दिशा मिल चुकी थी। अपनी कोशिशों से मैगी ने हजारों डॉलर जुटाए और सुर्खेत घाटी में जमीन खरीदा। साल 2010 में उन्होंने कोपिला वैली स्कूल की नींव रखी। आज इस स्कूल में सैकड़ों बच्चे पढ़ते हैं। इनमें से कई तो अपने परिवार की पहली संतान हैं, जिनकी जिंदगी में शिक्षा का प्रकाश फूटा है। स्कूल के अलावा भी इससे जुड़ी कई अन्य संस्थाएं स्थानीय लोगों का भला कर रही हैं। मैगी की एक जैविक संतान है, मगर वह कई अनाथ बच्चों की कानूनी मां हैं। सीएनएन ने उन्हें साल 2015 में हीरो ऑफ द ईयर से नवाजा।
(प्रस्तुति : चंद्रकांत सिंह)
शौर्यपथ / कोरोना महामारी और देशव्यापी लॉकडाउन से किसानों को हुई क्षति की भरपाई के लिए सरकार काफी सक्रिय है। किसानों को उपज का बेहतर मूल्य मिले और वे अपनी उपज कहीं भी बेच सकें, इसके लिए कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम में संशोधन की घोषणा की जा चुकी है। अब तक किसान राज्यों द्वारा अधिसूचित मंडियों में ही उपज बेच सकते हैं, नए कानून के बाद वे इस बंधन से मुक्त हो जाएंगे। सरकार ‘आवश्यक वस्तु अधिनियम’ में संशोधन करके उपज की स्टॉक सीमा भी खत्म करने जा रही है। इन दोनों कानूनों का मकसद है- संकट की इस घड़ी में किसानों के हितों की रक्षा करना। 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में कृषि और किसानों के लिए कई तात्कालिक व दीर्घकालिक योजनाएं शामिल हैं, जो यकीनन देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देंगी।
लेकिन राहत पहुंचाने के इन प्रयासों के बीच कृषि विशेषज्ञ कई बिंदुओं को लेकर आशंकित भी हैं। उनकी चिंता है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन के बाद किसान कहीं और ज्यादा शोषण के शिकार न हो जाएं। प्रस्तावित अनाजों व तिलहन समेत अन्य कई उपज को मौजूदा कानूनी दायरे से बाहर किए जाने के बाद किसानों के पास फसलों को सिर्फ सरकारी खरीद केंद्रों पर बेचने का विकल्प नहीं होगा। स्पष्ट है, सरकार मानकर चल रही है कि किसान निजी व्यापारियों को अपनी उपज बेचकर शायद ज्यादा लाभ कमा सकेंगे। यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब अनाज जमा करने को लेकर कोई रोक-टोक नहीं रहेगी और अकाल जैसी स्थितियों को छोड़ यह अधिनियम प्रभावी नहीं रहेगा। इस निर्देश के पीछे की मंशा किसानों के लिए कल्याणकारी है, पर इसके दूरगामी परिणाम कुछ और निकल सकते हैं। अबाध भंडारण के दीर्घकालिक रूप से प्रभावी होने पर दो बड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। पहली, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से कम कीमत मिलने की आशंका अधिक है। और दूसरी, निजी खरीदारों द्वारा भारी मात्रा में जमाखोरी से सरकारी खाद्य भंडारण व खाद्य सुरक्षा की मौजूदा व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
भारत जैसे आर्थिक संरचना वाले देश में अनाज भंडारण पर सरकारी नियंत्रण बेहद आवश्यक है। कल्पना कीजिए, यदि आज की स्थिति में अनाज भंडारण निजी क्षेत्र व व्यक्ति विशेष के हाथों में होता, तो भूख से मरने वालों की तादाद कितनी होती? आज भारतीय खाद्य निगम के पास 524 लाख टन का खाद्यान्न भंडार है। यह मात्रा अकाल और भुखमरी से बचाने के लिए पर्याप्त से अधिक है। पर यदि निजी हाथों में खाद्यान्न भंडारण देने का कानून बना, तो भविष्य में आपात स्थितियों में अनाज की आपूर्ति की स्थिति विषम हो सकती है। निस्संदेह, अनाज की उपलब्धता तो होगी, मगर शर्तें तब निजी घरानों की ही लागू होंगी। कई कृषि विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है कि निजी नियंत्रण के बाद मुनाफे के चक्कर में अधिकांश अनाज निर्यात भी किया जा सकता है। इससे सार्वजनिक वितरण प्रणाली प्रभावित हो सकती है।
आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में संसद ने इस मकसद से पारित किया था कि ‘आवश्यक वस्तुओं’ का उत्पादन, आपूर्ति व वितरण को नियंत्रित किया जा सके, ताकि ये चीजें उपभोक्ताओं को मुनासिब दाम पर उपलब्ध हों। आवश्यक वस्तु की श्रेणी में घोषित वस्तुओं का अधिकतम खुदरा मूल्य तय करने का अधिकार सरकार के पास होता है। तय मूल्य से अधिक कीमत लेने पर विक्रेता के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। मार्च में बढ़ते वायरस-संक्रमण के बीच मास्क व सैनिटाइजर की कालाबाजारी रोकने के उद्देश्य से सरकार को इन दोनों वस्तुओं को आवश्यक वस्तु की श्रेणी में डालना पड़ा था।
खरीफ व रबी फसलों के लिए प्रत्येक मौसम में एमएसपी की घोषणा की जाती है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि प्रत्येक राज्य से ऐसी शिकायतें आती रहती हैं कि किसानों को उनके उत्पाद का एमएसपी नहीं मिल रहा है। कृषि मंत्रालय और नीति आयोग, दोनों स्वीकार कर चुके हैं कि किसान घोषित एमएसपी से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में, नए कानून से जुड़ी अब तक की घोषणाओं से यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि निजी खरीदारों के लिए फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को मानना जरूरी होगा या नहीं? किसानों को लाभ तभी मिल पाएगा, जब निजी खरीदारों द्वारा दिए जाने वाले मूल्य की गारंटी सुनिश्चित होगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं
सम्पादकीय / शौर्यपथ /एक दुख हो या एक सुख, दोनों में से कोई अकेले नहीं आता। एक दुख के साथ कुछ अन्य दुख और एक सुख के साथ कुछ अन्य सुख अनायास आते हैं। बंगाल की खाड़ी से उठा तूफान अम्फान भी एक ऐसा दुख है, जो कोरोना के सतत होते दुख में शामिल होने आ गया है। इस तूफान पर सबकी नजर है। अम्फान को लेकर सकारात्मक बात यह है कि दुनिया भर के मौसम विज्ञानियों ने 14 मई के आसपास ही इससे बढ़ते खतरे का अंदाजा लगा लिया था। पश्चिम बंगाल और ओडिशा के तटीय इलाकों से जो खबरें आई हैं, उनसे पता चलता है, छह लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित होने वाले इलाकों से पहले ही निकाल लिया गया। लोगों को सचेत रहने के लिए कहा गया। ऐसा समुद्री तूफान 1999 के बाद से भारत में नहीं उठा था और यह भारत के साथ-साथ बांग्लादेश में भी तबाही की वजह बन सकता है। तूफान की गति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रेलगाड़ियों के डिब्बों को लोहे की चेन से बांधना पड़ा। तूफान की रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटा तक जाने की आशंका है। बहरहाल, पूर्व सूचना और सचेत होने का फायदा यह होगा कि जान का नुकसान कम से कम होगा, लेकिन माली नुकसान का आकलन आने वाले दिनों में स्पष्ट होगा।
आखिर क्यों उठते हैं ऐसे खतरनाक तूफान? वैज्ञानिक अध्ययनों ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जैसे-जैसे समुद्री जल गरम होता जाएगा, समुद्र से उठने वाले तूफानों की भयावहता बढ़ती जाएगी। 1979 से लेकर 2017 के बीच उठे तूफानों के सैटेलाइट आंकड़ों से पता चलता है, 185 किलोमीटर प्रति घंटा से ज्यादा की रफ्तार वाले घातक तूफानों की संख्या बढ़ती जा रही है। भौतिक विज्ञान पहले ही इस तथ्य को उजागर कर चुका है कि समुद्र अगर एक डिग्री सेल्सियस गरम होता है, तो उस पर चलने वाली हवाओं की रफ्तार में पांच से दस प्रतिशत की वृद्धि होती है। अब सवाल है, समुद्र का तापमान क्यों बढ़ रहा है, तो इसके जवाब पर भी फिर गौर कर लेना चाहिए, पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन के कारण पृथ्वी गरम हो रही है। कोरोना के दिनों में लॉकडाउन की वजह से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम हुआ है, जिसके कुछ फायदे साफ दिख रहे हैं। हमें ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को स्थाई रूप से कम करते जाने की पुख्ता व्यवस्था करनी पडे़गी, यह काम हम इंसानों के वश में है।
आज तूफान और कोरोना के बीच जो लोग संबंध देख रहे हैं, तो वे गलत नहीं हैं। देश के अन्य हिस्सों की तरह पश्चिम बंगाल व ओडिशा में कोरोना की वजह से लोग पहले ही परेशान हैं और अब तूफान की आपदा से बचने की कोशिश में फिजिकल डिस्र्टेंंसग का कितना पालन हो सकेगा, कहना मुश्किल है। इन दोनों राज्यों की सरकारों और देश के लिए दोहरी चुनौती पैदा हो गई है। लोगों को आपदा से भी बचाना है और कोरोना से भी। यदि छह लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं, तो यकीन मानिए, सबको संभालने के लिए राहत शिविरों में सावधानी और इंतजाम के पहले के तमाम कीर्तिमान तोड़ने पड़ेंगे। यह समय कदम-कदम पर चुनौती खड़ी कर रहा है और हमें प्रेरित कर रहा है कि हम अपनी और पृथ्वी की सुरक्षा के लिए सोलह आना ईमानदारी से काम करें। आपदाएं आएंगी-जाएंगी, इंसान जीतता रहा है, जीतता रहेगा।
बाजार में लौटेगी रौनक
शौर्यपथ / केंद्र सरकार ने लॉकडाउन 4.0 का एलान करते हुए आम जनता को थोड़ी-बहुत राहत दी है। दरअसल, घर में कैद लोग तनावग्रस्त हो रहे थे, जबकि कई सेवाओं के बंद रहने से मांग और आपूर्ति की शृंखला डगमगा रही था। अब तमाम तरह की छूट दी गई है, जिससे बाजार में निश्चय ही कुछ चहल-पहल दिखेगी और देश की आर्थिक गाड़ी पटरी पर लौटेगी। हालांकि, इस सबके बीच हर किसी को काफी सजग भी रहना होगा। अब हमारी धैर्यता की अग्नि-परीक्षा होगी कि हम भीड़भाड़ वाले इलाके में स्वयं को कितना सुरक्षित रखते हैं। ज्यादा भयभीत करने वाली बात यह है कि अब देश में औसतन पांच हजार मामले रोजाना सामने आ रहे हैं। यह बड़े संक्रमण का नतीजा है। लिहाजा बाजार जाएं, मगर सजग रहें। सावधानी और सतर्कता ही कोरोना का बचाव है।
शिक्षक भी कोरोना योद्धा
आज पूरा देश एकजुट होकर कोरोना से लड़ रहा है और हर उस व्यक्ति का सम्मान कर रहा है, जो कोरोना योद्धा हैं। डॉक्टर, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिसकर्मी आदि को असली योद्धा के रूप में खूब प्रचारित भी किया जा रहा है। मगर, एक ऐसा तबका है, जो कोरोना से रोज लड़ रहा है, लेकिन उसे हमने कोरोना योद्धा के रूप में कभी गिना ही नहीं। यह तबका है शिक्षकों का, जो ग्राम पंचायत से लेकर महानगर तक स्थानीय प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहा है। हमें उनके जज्बे को भी सलाम करना चाहिए और उन्हें भी पर्याप्त सम्मान देना चाहिए।
जितेंद्र माथुर
फीस माफ हो
वैश्विक महामारी कोविड-19 के परिप्रेक्ष्य में सभी निजी स्कूलों को शैक्षणिक सत्र 2020-21 की प्रथम तिमाही (अप्रैल-जून) की फीस पूरी तरह माफ कर देनी चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि वर्तमान सत्र में अप्रैल-मई माह में किसी प्रकार की कोई औपचारिक कक्षा नहीं हो पाई और जून में ग्रीष्म अवकाश होगा। इस प्रकार, पहली तिमाही में स्कूल पूरी तरह से बंद रहेंगे। दूसरी ओर, देशव्यापी लॉकडाउन के चलते समाज का हर वर्ग आर्थिक तौर पर बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। विशेष रूप से निजी क्षेत्र के नौकरी-पेशा अभिभावकों के लिए, जिनको इस अवधि में 40-50 प्रतिशत वेतन ही मिला है, फीस दे पाना संभव नहीं है। केंद्र व राज्य सरकारों ने जिस प्रकार तमाम आर्थिक रियायतों और सहयोग की घोषणा की है, निजी स्कूलों से भी अपेक्षा है कि वे इस अवधि के लिए अपने स्टाफ का वेतन अपने निजी संसाधनों से देने पर विचार करेंगे और अभिभावकों पर इसके लिए किसी प्रकार का दवाब नहीं बनाएंगे। निजी स्कूलों के पास इस बाबत कई तरह के फंड पहले से मौजूद हैं भी।
राज्यों की चुनौती
औपचारिक तौर पर लॉकडाउन 4.0 के शुरू होने के साथ ही राज्यों की जिम्मेदारियां और चुनौतियां कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं। एक लंबे सिलसिले के बाद लॉकडाउन 4.0 में कई सारी रियायतें दी गई हैं। मौजूदा समय में राज्य सरकारों को आर्थिक गतिविधियों को पटरी पर लाने के साथ-साथ प्रवासी श्रमिकों की जांच का दायरा भी बढ़ाना होगा, ताकि बड़ी संख्या में लौट रहे प्रवासी मजदूरों के कारण संक्रमण न फैले। जाहिर है, अब कोरोना महामारी की लड़ाई धीरे-धीरे राज्यों पर निर्भर होती जा रही है। अब राज्य सरकारों को बेहतर फैसले लेने होंगे, ताकि कोरोना के बढ़ते संक्रमण को थामने में मदद मिल सके। साथ ही, एक राज्य को दूसरे राज्य के साथ बेहतर समन्वय बनाना होगा, जिससे राज्यों की सीमाओं पर ठहरे मजदूरों को अपने-अपने घर जाने की अनुमति मिल सके और अनावश्यक जमावड़े से बचा जा सके।
रितिक सविता, डीयू
ओपिनियन / शौर्यपथ / कोविड-19 ने दुनिया को खासा प्रभावित किया है। इससे लोगों की मौत हो रही है, उनके रोजगार खत्म हो रहे हैं, और रोजमर्रा के जीवन में उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। इन तमाम परेशानियों के बावजूद, कोविड-19 के घने अंधियारे में उम्मीद की किरण मौजूद है। यह संकट दरअसल विभिन्न क्षेत्रों में इनोवेशन यानी नवाचार को बढ़ावा दे सकता है, और बिल्कुल नए तरीके से सोचने वाला समाज गढ़ सकता है।
अतीत में भी महामारी ने नवाचार को गति देने का काम किया है और नए विचारों के साथ बदलाव को मुमकिन बनाया है। जैसे, 2002 में चीन और अन्य पूर्वी एशियाई देशों में फैले सार्स ने दुनिया को बदल दिया था। माना जाता है कि सार्स से वैश्विक अर्थव्यवस्था को अरबों डॉलर का नुकसान हुआ था, क्योंकि आज की तरह ही उन दिनों लोगों ने घर से बाहर निकलना बंद कर दिया था। हालांकि, उस संकट ने उन तमाम राष्ट्रों में इंटरनेट की पहुंच बढ़ा दी, जहां इसका नेटवर्क काफी कम था। ई-कॉमर्स यानी ऑनलाइन खरीदारी को लोकप्रियता मिली, जबकि पहले इसका अस्तित्व ही नहीं था। चीनी ई-कॉमर्स कंपनियां अलीबाबा और जेडी डॉट कॉम ने इसका खूब फायदा उठाया और वे दुनिया की प्रभावशाली कंपनियां बन गईं। इसीलिए, मौजूदा कोविड-19 संकट के दौरान अलीबाबा या जेडी डॉट कॉम से बड़ी किसी भारतीय कंपनी के सृजन का सपना देखना लाजिमी है।
भारत में पिछले एक दशक में इटरनेट और स्मार्टफोन ने गहरी पैठ बनाई है। इससे डिजिटल समाधान और नवाचार बढ़ाए जा सकते हैं। ‘लो टच ऑर कॉन्टैक्टलेस’ यानी ‘कम-स्पर्श या संपर्क-विहीन’ सेवा पहुंचाना अब अर्थव्यवस्था का नया मानक बनता जा रहा है। इसका मतलब है कि अब हर लेन-देन में उन स्थितियों से बचा जाएगा, जहां स्पर्श की गुंजाइश होती है। मसलन, किसी किराना स्टोर में जाने की बजाय लोग ऑनलाइन खरीदारी करना पसंद करेंगे। डॉक्टर भी मरीज को क्लिनिक में बुलाने से बेहतर ऑनलाइन देखना चाहेंगे। आने-जाने से तौबा करके लोग ऑनलाइन ही भेंट-मुलाकात करेंगे। इसीलिए, ‘लो टच’ को केंद्र में रखकर कई तरह के नए इनोवेशन हो सकते हैं। ये लंबे समय तक सामाजिक बदलाव के कारक भी बनेंगे। जैसे, ‘पोस्टमैट्स’ और ‘इंस्टाकार्ट’ जैसे स्टार्टअप कूरियर ब्यॉय और ग्राहक के बीच संपर्क कम करने के लिए ‘कॉन्टैक्टलेस’ डिलीवरी कर रहे हैं।
कोविड-19 महामारी ने सामाजिक और व्यावसायिक नियम बदल दिए हैं। ‘वर्किंग फ्रॉम होम’ यानी घर से काम अब सामान्य बात हो गई है, क्योंकि यह व्यवस्था आर्थिक रूप से किफायती है व कामकाज के लिहाज से लचीली भी। चूंकि अचल संपत्ति की कीमतें आसमान छू रही हैं, इसलिए आजकल बडे़ शहरों में ऑफिस रखना महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसके अलावा, फर्नीचर, पार्किंग, साज-सज्जा, परिवहन आदि पर भी कंपनियों को बहुत खर्च करना पड़ता है। लिहाजा, अपने कर्मियों को घर से काम करने की अनुमति देकर कंपनियां इस तरह के खर्च कम कर सकती हैं। महानगरों या बड़े शहरों में एक ही स्थान पर आपसी तालमेल करके दो-तीन कंपनियों को चलाने का चलन लोकप्रिय होने ही लगा है। चूंकि इस व्यवस्था में कम संख्या में लोग आना-जाना करेंगे, इसलिए प्रदूषण भी कम होगा, सार्वजनिक परिवहन पर भार घटेगा और ईंधन जैसे बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन की बचत होगी।
मौजूदा उथल-पुथल में उद्योग जगत ‘इंडस्ट्री 4.0’ या चौथी औद्योगिक क्रांति की ओर बढ़ने का प्रयास करेंगे। इससे कारोबारी दुनिया में महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे। फैक्टरियां ऑटोमेशन अपनाएंगी और रोबोटिक्स का इस्तेमाल ज्यादा होगा। ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ बहुत सारे लोगों के रहन-सहन और कामकाज को बदल देगा, क्योंकि घरों और ऑफिस में बौद्धिक उपकरणों पर हमारी निर्भरता बढ़ जाएगी। एक ड्रोन से कई तरह के सामान मुहैया कराए जा सकते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमता और इंटरनेट ऑफ थिंग्स के इस्तेमाल की काफी ज्यादा संभावनाएं भारत के स्वास्थ्य ढांचे में हैं। सर्जरी में मददगार रोबोटिक्स का इस्तेमाल देश में बढ़ भी रहा है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स का उपयोग मरीजों की सेहत का रिकॉर्ड रखने में हो सकता है। यह बीमारी के लक्षण की सटीक सूचना सही वक्त पर दे सकता है। आरोग्य सेतु एप इसका एक उदाहरण है। यह एप फोन के जीपीएस और ब्लूटुथ का इस्तेमाल करके बता सकता है कि आप किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में तो नहीं आए हैं। एक और डिजिटल इनोवेशन सार्वजनिक वितरण प्रणाली में संभव है। बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण और एप का इस्तेमाल करते हुए ‘एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड’ की संकल्पना साकार की जा सकती है।
हमारी शिक्षा प्रणाली में भी प्रौद्योगिकी-आधारित नवाचार की काफी संभावनाएं हैं। विश्वविद्यालयों को सूचना प्रौद्योगिकी के लिहाज से तैयार करने को लेकर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने कई तरह के कदम उठाए हैं। केंद्र सरकार ने भी देश में ऑनलाइन शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ‘ई-विद्या’ कार्यक्रम की घोषणा की है। इसमें अब सबसे बड़ी चुनौती स्कूलों और कॉलेजों में परीक्षा आयोजित करने की है, क्योंकि हमारे यहां परीक्षा में शामिल होने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या काफी ज्यादा है। उत्तर प्रदेश बोर्ड परीक्षा में ही हर साल लाखों परीक्षार्थी बैठते हैं। लिहाजा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के रूप में ‘एग्जाम-सेवा’ की शुरुआत की जा सकती है, जिसका मकसद परीक्षाओं का बोझ कम करने के लिए ऑनलाइन मूल्यांकन को हकीकत बनाना हो। टीसीएस द्वारा संचालित ‘पासपोर्ट सेवा’ देश में एक सफल डिजिटल पहल है ही। कोरोना-काल के बाद भी यह प्रयास उपयोगी साबित हो सकता है।
कोरोना वायरस के कहर ने आपूर्ति शृंखला को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया है। अभी प्रौद्योगिकी आधारित एक वैकल्पिक आपूर्ति शृंखला की दरकार है, जो प्रवासी मजदूरों या किसानों की समस्याओं का हल करे। प्रमुख कॉरपोरेट घराने और आईआईएम या आईआईटी का ऐसा कोई संयुक्त संगठन बनाया जा सकता है, जो सरकार के अधीन हो। पुराने जिला उद्योग केंद्र (डीआईसी) को इसकी जिला नोडल एजेंसी का रूप दिया जा सकता है। आधुनिक डीआईसी यह सुनिश्चित करने का काम करेगा कि आपूर्ति शृंखला प्रक्रिया में किसानों की सीधी सहभागिता हो। उम्मीद की जा सकती है कि अलीबाबा, अमेजन या जेडी डॉट कॉम जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म का भारतीय संस्करण बनाने में भी यह संगठन कामयाब होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं) साभार लेख का नाम दीपक कुमार श्रीवास्तव, प्रोफेसर, आईआईएम, तिरूचिरापल्ली
प्रदेश के किसानों को मिलेगी बड़ी राहतरू 5700 करोड़ रूपए की राशि डीबीटी के माध्यम से चार किश्तों में जाएगी किसानों के खातों में
प्रदेश में धान, मक्का और गन्ना (रबी) के 19 लाख किसानों को मिलेगा फायदा
प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए कृषकों के खातों में होगा ऑनलाईन अंतरण
किसानों को खेती किसानी से जोडऩे देश में अपने किस्म की पहली योजना
मुख्यमंत्री बघेल ने योजना के शुभारंभ कार्यक्रम की तैयारियों की समीक्षा की
रायपुर / शौर्यपथ / पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी के शहादत दिवस 21 मई के दिन छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के लिए न्याय योजना शुरू कर रही है। दिल्ली से श्रीमती सोनिया गांधी और राहुल गांधी वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिए इस योजना के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल होंगे। मुख्यमंत्री बघेल और मंत्रीमण्डल के सदस्यगण मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में आयोजित कार्यक्रम में दोपहर 12 बजे स्वर्गीय राजीव गांधी के तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करेंगे। इसके पश्चात् किसानों को दी जाने वाली 5700 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि के कृषकों के खातों में ऑनलाईन अंतरण की जाएगी। कार्यक्रम में जिलों से सांसद, विधायक, अन्य जनप्रतिनिधि, किसान और विभिन्न योजनाओं के हितग्राही भी वीडियो कांफ्रेसिंग से जुड़ेंगे।
मुख्यमंत्री बघेल आज यहां अपने निवास कार्यालय में योजना के शुभारंभ के लिए की जा रही तैयारियों की वरिष्ठ अधिकारियों के साथ समीक्षा भी की। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ देश में पहला ऐसा राज्य है जो किसानों को सीधे तौर पर बैंक खातों में राशि ट्रांसफर कर 5700 करोड़ रूपए की राहत प्रदान कर रहा है। कोरोना संकट के काल में किसानों को छत्तीसगढ़ सरकार राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से बड़ी राहत प्रदान करने जा रही है। इस योजना का उद्देश्य फसल उत्पादन को प्रोत्साहित करना और किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाना है।
मुख्यमंत्री बघेल कार्यक्रम के आरंभ में राजीव गांधी किसान न्याय योजना के संबंध में संक्षिप्त उद्बोधन देगें । कार्यक्रम में किसानों को दी जाने वाली 5700 करोड़ रूपए की राशि में से प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि के कृषकों के खातों में अंतरित की जाएगी। इस अवसर पर जिला मुख्यालयों में उपस्थित योजना के हितग्राहियों के साथ ही महिला स्व-सहायता समूहों के सदस्यों, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और लघु वनोपज के हितग्राही तथा गन्ना और मक्का उत्पादक किसानों से वीडियो कांफ्रेसिंग से जरिए चर्चा भी की जाएगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने तथा कृषि के क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर सृजित करने लिए यह महत्वाकांक्षी योजना लागू की जा रही है। इस योजना से न केवल प्रदेश में फसल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि किसानों को उनकी उपज का सही दाम भी मिलेगा। इस योजना के तहत प्रदेश के 19 लाख किसानों को 5700 करोड़ रूपए की राशि चार किश्तों में सीधे उनके खातों में अंतरित की जाएगी। यह योजना किसानों को खेती-किसानी के लिए प्रोत्साहित करने की देश में अपने तरह की एक बडी योजना है।
राज्य सरकार इस योजना के जरिए किसानों को खेती किसानी के लिए प्रोत्साहित करने के लिए खरीफ 2019 से धान तथा मक्का लगाने वाले किसानों को सहकारी समिति के माध्यम से उपार्जित मात्रा के आधार पर अधिकतम 10 हजार रूपए प्रति एकड़ की दर से अनुपातिक रूप से आदान सहायता राशि दी जाएगी। इस योजना में धान फसल के लिए 18 लाख 34 हजार 834 किसानो को प्रथम किश्त के रूप में 1500 करोड़ रूपए की राशि प्रदान की जाएगी। योजना से प्रदेश के 9 लाख 53 हजार 706 सीमांत कृषक, 5 लाख 60 हजार 284 लघु कृषक और 3 लाख 20 हजार 844 बड़े किसान लाभान्वित होंगें।
इसी तरह गन्ना फसल के लिए पेराई वर्ष 2019-20 में सहकारी कारखाना द्वारा क्रय किए गए गन्ना की मात्रा के आधार पर एफआरपी राशि 261 रूपए प्रति क्विंटल और प्रोत्साहन एवं आदान सहायता राशि 93.75 रूपए प्रति क्विंटल अर्थात अधिकतम 355 रूपए प्रति क्विंटल की दर से भुगतान किया जाएगा। इसके तहत प्रदेश के 34 हजार 637 किसानों को 73 करोड़ 55 लाख रूपए चार किश्तों में मिलेगा। जिसमें प्रथम किश्त 18.43 करोड़ रूपए की राशि 21 मई को अंतरित की जाएगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा इसके साथ ही वर्ष 2018-19 में सहकारी शक्कर कारखानों के माध्यम से खरीदे गए गन्ना की मात्रा के आधार पर 50 रूपए प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन राशि (बकाया बोनस) भी प्रदान करने जा रही है। इसके तहत प्रदेश के 24 हजार 414 किसानों को 10 करोड़ 27 लाख रूपए राशि दी जाएगी। राज्य सरकार ने इस योजना के तहत खरीफ 2019 में सहकारी समिति, लैम्पस के माध्यम से उपार्जित मक्का फसल के किसानों को भी लाभ देने का निर्णय लिया है। मक्का फसल के आकड़े लिए जा रहे हैं, जिसके आधार पर आगामी किश्त में उनको भुगतान किया जाएगा।
इस योजना में राज्य सरकार ने खरीफ 2020 से इसमें धान, मक्का, सोयाबीन, मूंगफली, तिल, अरहर, मूंग, उड़द, कुल्थी, रामतिल, कोदो, कोटकी तथा रबी में गन्ना फसल को शामिल किया है। सरकार ने यह भी कहा है कि अनुदान लेने वाला किसान यदि गत वर्ष धान की फसल लेता है और इस साल धान के स्थान पर योजना में शामिल अन्य फसल लेता हैं तो ऐसी स्थिति में उन्हें प्रति एकड़ अतिरिक्त सहायता दी जायेगी।
छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा प्रदेश की अर्थव्यवस्था को गतिशील और मजबूत बनाने के लिए लॉकडाउन जैसे संकट के समय में किसानों को फसल बीमा और प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के तहत 900 करोड़ की राशि उनके खातों में अंतरित की गई है। मुख्यमंत्री बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा इसके पहले लगभग 18 लाख किसानों का 8800 करोड़ रूपए का कर्ज माफ किया गया है साथ ही कृषि भूमि अर्जन पर चार गुना मुआवजा, सिंचाई कर माफी जैसे कदम उठाकर किसानों को राहत पहुंचाई गई है।
रसोई / शौर्य पथ
वेज मोमोज
सामग्री :
2 कप मैदा, 1/2 कप पत्ता गोभी किसी हुई, 1/4 कप किसी शिमला मिर्च, 1/2 कप किसा प्याज, अजवायन आवश्यकतानुसार, 1 चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार।
विधि :
सबसे पहले मैदा छानकर उसमें थोड़ा सा नमक, तेल और अजवायन डालकर मठरी जैसा आटा गूंथ कर रख दें। अब पत्ता गोभी, प्याज और शिमला मिर्च में नमक और अजवाइन डालें। फिर आटे की छोटी-छोटी लोई लेकर हाथ से चपटी करें। अब इसमें 1 चम्मच तैयार मिश्रण को भरकर चारों ओर से चुन्नटें डालते हुए बंद करें।
इडली के सांचे में पानी रखकर गरम कर लें और इडली पात्र में मोमोज रखकर 15 से 20 मिनट तक धीमी आंच पर भाप में पकाएं। लीजिए झटपट तैयार होने वाला यह स्वादिष्ट व्यंजन घर में सभी को जरूर पसंद आएगा। अब हरी चटनी के साथ मोमोज सर्व करें।
टेस्टी पास्ता
सामग्री :
250 ग्राम पास्ता, 1 बड़ी लहसुन की कली कटी हुई, 2 सूखी लाल मिर्च पानी में भिगाई हुई, 1 चम्मच तेल, 1 रसीला नींबू, 1 कप सब्जियों को उबालकर तैयार किया गया पानी या रस।
विधि :
सब्जियों के पानी में पास्ता को उच्छी तरह से उबालकर पका लें। अब पास्ते का पानी निकालकर उसे एक बाउल में अलग कर लें।
कड़ाही में धीमी आंच पर तेल गरम करें। इसमें कटी हुई लहसुन और लाल मिर्च डालें और हल्का गुलाबी होने तक भूनें।
अब इसमें उबला हुआ पास्ता डाल दें और अच्छी तरह मिलाएं। ऊपर से जैतून, नमक व मिर्च डालकर गरम परोसें।
बचे चावल के कुरकुरे पकौड़े
सामग्री :
एक कटोरी या उससे अधिक बचे हुए उबले चावल, एक कप बेसन, दो हरी मिर्च बारीक कटी हुई, पाव कप गेहूं का आटा, आधा चम्मच लाल मिर्च पाउडर, आधा चम्मच जीरा, एक चुटकी हींग, पाव चम्मच हल्दी पाउडर, स्वादानुसार नमक, हरा धनिया बारीक कटा हुआ, तलने के लिए तेल।
विधि :
सबसे पहले एक बर्तन में बचे हुए चावल लें और उसमें तेल को छोड़कर सभी सामग्री मिला लें। आवश्यकतानुसार पानी डालकर अच्छे से मिलाएं और चावल को घोल में ही मसल लें तथा पकौड़े का घोल तैयार कर लें।
अब एक कड़ाही में तेल गरम करके तैयार मिश्रण के छोटे-छोटे पकौड़े बनाएं और धीमी आंच पर क्रिस्पी होने तक तल लें। तैयार बचे हुए चावल के क्रिस्पी पकौड़ों को गरमा-गरम ही सॉस और चाय के साथ पेश करें।
स्पाइसी पोटॅटो सैंडविच
सामग्री :
1 पैकेट ब्रेड, 250 ग्राम आलू, 1 प्याज कटा हुआ, 2 हरी मिर्च, 1 चम्मच लाल मिर्च पाउडर, नमक स्वादानुसार, 1 चम्चम सौंफ, थोड़ा-सा हरा धनिया और तेल।
विधि :
आलू का सैंडविच बनाने में एकदम आसान होता है। सबसे पहले आलू को उबाल लें। अब इसमें सभी मसाले, प्याज, हरी मिर्च मिला लें।
इसके बाद ब्रेड स्लाइस के अंदर मसाला भरें और इसे ग्रिल कर लें। अब हरी चटनी या टोमॅटो सॉस के साथ स्पाइसी पोटॅटो सैंडविच पेश करें।
झन्नाट क्रंची पकौड़े
सामग्री :
तीन आलू (बड़े साइज के), आधा-आधा कप चावल का आटा व बेसन, आधा कटोरी लहसुन-मूंगफली की तैयार चटनी, एक चम्मच लाल मिर्च, चुटकी भर हल्दी एवं एक चुटकी हींग, तेल (तलने के लिए), नमक स्वादानुसार।
विधि :
सर्वप्रथम कच्चे आलू को छिल लें और पतले चिप्स में काट कर अलग रख दें। अब चावल का आटा व बेसन लेकर मसाला सामग्री डालकर घोल तैयार करें। ध्यान रहें कि घोल गाढ़ा हो। तत्पश्चात आलू स्लाइस पर दोनों तरफ दाने की लहसुनी चटनी की तह लगाएं और दूसरे आलू चिप्स से ढंक कर तैयार घोल में डुबोएं।
एक कड़ाही में तेल गर्म करके धीमी आंच पर कुरकुरे होने तक तल लें। लहसुनी स्वाद में लाजवाब आलू स्लाइस के चटपटे नमकीन पकौड़े हरी और इमली के चटनी के साथ मेहमानों को पेश करें। चाय के साथ झन्नाट क्रंची पकौड़े का लुत्फ उठाएं।
सेहत / शौर्यपथ / इस संकट की घड़ी में आपके लोकप्रिय अखबार हिंदुस्तान में हेल्पलाइन सेवा शुरू की गई है। बड़ी संख्या में लोग हेल्पलाइन सेवा का लाभ उठा रहे हैं।मंगलवार को आप आयुर्वेद पद्धति का लाभ उठा सकते हैं। आयुर्वेद विशेषज्ञ टेलीफोन पर दोपहर 12 से 2 बजे तक सलाह देंगे।
हिन्दुस्तान की हेल्पलाइन पर मंगलवार को आयुर्वेद विशेषज्ञों ने लोगों को उनकी बीमारी से जुड़े सवालों के जवाब देकर जिज्ञासा शांत की। साथ ही अपील की कि लोग कोरोना को लेकर डरे नहीं। बिना डर के कोरोना न फैले। इसके लिए पूरा सहयोग करें। खुद को सुरक्षित रखने के साथ परिवारीजनों, परिचितों को सुरक्षित रखें। लॉकडाउन का पूरा पालन करें।
मुझे बीपी की शिकायत है। सिर दर्द हो रहा है, क्या यह बीपी की वजह से है ? -
पहले तो आप जो बीपी बढ़-घट नहीं रहा है तो जो दवा डॉक्टर ने दी, उसे खाते रहें। नमक भोजन में कम कर दें। सुपाच्य भोजन व अन्य पदार्थ खाएं। गुनगुने पानी का सेवन करें। भाप लें।
सर मुझे खांसी, जुकाम, गले व बदन में दर्द, नाक बहने की समस्या है, क्या करें ?
आप 8 से 10 बार गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारा करें। गुनगुना पानी पिएं। काली मिर्च, अदरख, तुलसी पत्र एवं पुराने गुड़ को मिलाकर काढ़ा बना लें। उसे जितना गर्म सेवन कर सकते हो, जिससे जुबान-मुंह न जले, दिन में तीन बार 20 से 30 एमएल पिएं। इसके अलावा गिलोयधन वटी दो-दो गोली तीन बार खाएं। इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। ’
मेरे खांसी जुकाम व बदन दर्द है, कोरोना तो नहीं है ? -
यह कोरोना का लक्षण नहीं है। अपने मन से पहले कोरोना वायरस का खौफ निकाल दें। आप कई बार गुनगुने पानी में नमक डालकर गरारा करें। काली मिर्च, अदरक, तुलसी पत्र एवं पुराने गुड़ का काढ़ा बनाकर पिएं। गुनगुना पानी पीती रहें।
हमारे कमर और घुटनों में दर्द हो रहा है। इसके लिए क्या करें? -
आप सहजन की पत्ती को उबालकर, उसी गुनगुने पानी से सिंकाई करें। उसी सहजन के पत्तों को बांध लें, जहां दर्द हो रहा हो। योगराज गुग्गुल की दो-दो गोली सुबह शाम खाएं। अपनी कमर, घुटनों व दर्द वाली जगह पर पंचगुण तेल लगाएं। इससे बहुत आराम मिलेगा।
’ सर मेरे बदन, गले में दर्द व खराश है। क्या करें ? -
आप काढ़ा का सेवन करें। गुनगुने पानी व नमक का गरारा करें। शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत रखने के लिए गिलोयधन वटी दो-दो गोली तीन बार खाएं। ’ घर में पड़े-पड़े गैस, कब्ज हो गई है। खाने का भी मन नहीं करता है, क्या करें ? रजनीश, चौक गुनगुना पानी पिएं। घर में खूब टहलें। एक ही जगह पर सिर्फ लेटे या बैठे नहीं रहें। मुलैठी का चूर्ण बना लें। इसे तीन-तीन ग्राम सुबह और शाम को गुनगुने पानी से ही खा लें। अविपत्तिकर चूर्ण तीन बार तीन-तीन ग्राम खाएं। साथ ही आरोग्यवर्धनी वटी की दो-दो गोली सुबह व शाम को खाएं। ’
मेरे डायबिटीज है। बुखार आ रहा है। पेट भी गड़बड़ है, क्या करें ? -
आप सबसे पहले खट्टा और मिर्चे को भोजन में बंद कर दें। बुखार की जो दवा ले रहे हैं, बुखार न आने पर उसे न खाएं। हर्बुलेक्स आयुर्वेदिक दवा ले लें। घर में थोड़ा जरूर टहलें।
इन लक्षणों को पहचानें
- शरीर में तेज दर्द के साथ कमजोरी
- लिवर और किडनी में परेशानी
- सांस में तकलीफ होना
- निमोनिया के लखण दिखना
- पाचन क्रिया में अचानक तकलीफ होना, ऐसा होने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
डॉक्टरों की सलाह
दफ्तरों में काम करने वाले लोग घर पर खाली हैं। ऐसे में कोई भी बीमारी होती है तो लोग पहले कोरोना सोचने लगते हैं। मन में वहम है। इसलिए जरूरी है कि घर में टहलें, व्यायाम करें और खुद को इंडोर गेम में व्यस्त करें।-
बुखार, बदन व गले के दर्द को कोरोना से न जोड़ें। एहतियात बरतें। अपनी दिनचर्या में चाय की जगह पर दिन में दो-तीन बार काढ़ा पिएं। हो सके तो गिलोयधन वटी दो-दो गोली तीन बार खाएं। -
सेहत / शौर्यपथ / रुटीन वर्कआउट में स्ट्रेचिंग को शामिल करना बहुत जरूरी है। मांसपेशियों में खिंचाव से जुड़े ये व्यायाम न सिर्फ वॉर्मअप का काम करते हैं, बल्कि इससे मसल की जकड़न दूर होती है और शरीर लचीला बनता है। आज हम आपको तीन स्ट्रेचिंग एक्सरसाइज के बारे में बता रहे हैं जिनसे शरीर मजबूत होगा और पीठ दर्द में राहत भी मिलेगी।
सीटेड हिप ट्विस्ट-
दायें पैर को बायीं जांघ के ऊपर रखते हुए चटाई पर बैठ जाएं। जब आप श्वास लेंगे तो आपका मेरुदंड तना रहेगा। अब आपको श्वास छोड़ते हुए खुद को बायीं ओर मोड़ना है। दोनों तरफ से इस व्यायाम को पांच-पांच बार करें।
लाभ : इस व्यायाम में जब आप पैर और नितंब को मोड़ते हैं तो शरीर को स्थिर होने का प्रशिक्षण मिलता है। उदर की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।
काउ फेस पोज-
जमीन पर दोनों पैरों को एक-दूसरे के ऊपर मोड़कर इस तरह रखें कि एक घुटना दूसरे घुटने के ऊपर आ जाए। अब दायें हाथ को कंघे से ऊपर से पीछे की ओर ले जाएं। अब बायां हाथ मोड़ते हुए कमर की ओर से पीछे ले जाएं। दोनों हाथ पीठ पर एकदूसरे को छूने चाहिए। रीढ़ की हड्डी को सीधा रखें, अब इस अवस्था में रहते हुए कई मिनट तक गहरी सांस भरें।
लाभ : इसे करने से कूल्हों, टखनों, जांघ, कंधे, कांख, छाती की मांसपेशियों में गहरा खिंचाव होता है। घुटनों के दर्द में राहत मिलती है।
कैट-काउ पोज-
अपने दोनों हाथों और घुटने के बल लेट जाएं। इस अवस्था में कंधे और घुटने नितंब से एकसीध में रहेंगे। अब धीरे से नितंब की हड्डी (टेलबोन) को उठाएं और अपने कंघों को झुकाते निगाह जमीन पर ले जाएं। आपका सिर नीचे झुक जाएंगा, रीढ़ की हड्डी गोलाकार मुद्रा में होगी। इस अवस्था में पेट का तानते हुए नाभि की ओर ध्यान ले जाएं। अब इस व्यायाम को दोहराएं।
लाभ : इस मुद्रा से गर्दन, कंधे और रीढ़ में लचीलापन बढ़ता है। साथ ही मासिक धर्म के दौरान होने वाली ऐंठन, पीठ के निचले हिस्से के दर्द में राहत मिलती है।
सेहत / शौर्यपथ / कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत में भी कोविड-19 के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों के मन में रोज नए-नए सवाल उठ रहे हैं। यहां हम विश्व स्वास्थ्य संगठन, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और विशेषज्ञों द्वारा दी जा रही कोरोना से जुड़ी जानकारियों को आप तक पहुंचाएंगे।
अपने शरीर को लॉकडाउन के बाद के लिए किस तरह तैयार करें?
जवाब-
हाथ धोना, साफ-सफाई व सामाजिक दूरी का पालन करना ही सर्वोत्तम उपाय है। इसके अलावा भी कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होगा। इंपीरियल कॉलेज ऑफ लंदन के कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर कौशिक रे के अनुसार, अपने ब्लड शुगर की जांच करते रहें। उसे काबू में रखें। बढ़ा हुआ ब्लड शुगर इम्यूनिटी कम करता है। दिल को स्वस्थ रखें। पहले से कोई समस्या है तो दवाएं लेने और रेगुलर चेकअप में लापरवाही न बरतें। तंबाकू और धूम्रपान छोड़ने की कोशिश करें। वजन ज्यादा है तो उसे कम करें। नियमित व्यायाम करें।
क्या हर समय मास्क पहने रखना हानिकारक साबित हो सकता है?
जवाब-
न्यू जर्सी में एक ड्राइवर के एक्सीडेंट का मामला सामने आया है, जिसमें लंबे समय तक एन-95 मास्क पहनने से कन्फ्यूजन, सांस लेने में दिक्कत और चक्कर आने की स्थिति पैदा हुई। फरीदाबाद में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के डॉ. बुद्धिराजा के अनुसार, यह रेयर मामला है। लंबे समय तक एन-95 मास्क पहनने से ऑक्सीजन की कमी और कार्बनडाईऑक्साइड का स्तर ज्यादा हो सकता है। कपड़े के मास्क इस मायने में सुरक्षित हैं। एन-95 मास्क पहना है, तो शीशे खोल कर कार चलाएं। लगातार कई घंटे इसे न पहनें। अकेले हों तो मास्क कुछदेर उतार दें।
गले और नाक को ठीक रखने के घरेलू उपाय क्या हैं-
जवाब-
कोविड-19 के मद्देनजर आयुष मंत्रालय ने कुछ पारंपरिक आयुर्वेदिक उपायों के बारे में बताया है। नाक को साफ रखने के लिए सुबह-शाम तिल या नारियल का तेल या फिर घी नाक के दोनों छिद्रों में लगाएं। दिन में दो या तीन बार एक चम्मच तिल या नारियल का तेल दो से तीन मिनट तक मुंह में घुमाएं और थूक दें। फिर गर्म पानी से कुल्ला करें। सूखी खांसी या गले में खराश हो तो पानी में पुदीने की पत्तियां या अजवाइन डाल कर दिन में एक बार भाप लें। लौंग के पाउडर में शहद मिलाकर दिन में दो-तीन बार सेवन करें।
सेहत / शौर्यपथ / लॉकडाउन के कारण अगर आप अपने बच्चे का जरूरी टीका लगवाने से रह गए हैं तो आपकी चिंता जायज है। असल में कोविड-19 के कारण हेल्थ संसाधनों पर ज्यादा बोझ होने से नियमित टीकाकरण में व्यवधान पैदा हुआ है। जिससे ये समस्या पैदा हुई है। ऐसी स्थिति से निटपने के लिए इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने कुछ निर्देश जारी किए हैं, जिनका पालन करते हुए इस असाधारण समय में बच्चे की देखभाल की जा सकती है।
लॉकडाउन में 32 लाख बच्चे रह जाएंगे वंचित-
-01 साल पहले पैदा हुए खसरा या एमएमआर डोज से वंचित रह सकते हैं।
-5.5 लाख नए बच्चे हर सप्ताह जुड़ रहे हैं टीकाकरण से पूर्ण या आंशिक वंचितों में।
-2020 के जनवरी-फरवरी में पैदा हुए बच्चों को मार्च-अप्रैल में दी जाने वाली डीटीपी-पोलियो खुराक छूटी।
-32.4 लाख बच्चे देश में टीकाकरण से छूट जाएंगे या उनको सभी टीके नहीं लग सकेंगे।
(स्त्रोत - इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स )
इम्यूनिटी मजबूत करता है टीकाकरण-
टीका बीमारियों के वायरस को कमजोर कर देता है या उसे खत्म कर देता है। टीकाकरण से शिशु के शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यूनिटी) मजबूत रहती है। जिससे भविष्य में बीमारियों से बचने में मदद मिलती है। टीकाकरण संक्रामक बीमारियों जैसे पोलियो आदि के प्रसार को रोकने का सबसे प्रभावी तरीका है।
इम्यूनाइजेशन न होने पर संक्रमण का खतरा-
विश्व स्वास्थ्य संगठन यह चिंता जता चुका है कि जिन देशों में रुटीन टीकाकरण नहीं हो पा रहा है, वहां बच्चों के शरीर में कोरोना व अन्य तरह के वायरस व रोगों से लड़ने के लिए मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र नहीं तैयार नहीं हो पाएगा।
मां क्वारंटाइन हो तो ये करें-
किसी बच्चे की मां अगर कोरोना ग्रस्त रही हो या उन्हें होम क्वारंटाइन किया गया हो तो उस बच्चे को वैक्सीनेट करने की आवश्यकता है। ऐसी स्थिति में अभिभावक अपने डॉक्टर की सलाह लेकर बच्चे का टीकाकरण कराएं।
टीका छूटने पर ऐसा करें अभिभावक-
इंडियन अकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने अभिभावकों को सलाह दी है कि कोविड-19 के कारण बच्चों के छूटे टीके को आगे की तारीखों में लगवाना ठीक रहेगा। यह सुनिश्चित किया जाए कि नवजात को बीसीजी, बी-ओपीवी और हेपेटाइटिस बी की बर्थ डोज मिली है या नहीं। स्थानीय स्वास्थ्य केंद्र के संपर्क में रहें और शिशु की पोलियो, इन्फ्लूएंजा, एमएमआर और खसरा की खुराक प्राथमिकता से लगावाएं।
शौर्यपथ /धर्म संसार / कंस ने बालकृष्ण को मारने के लिए पहले पूतना, श्रीधर तांत्रिक, उत्कच, तृणासुर, तृणावर्त आदि कई अनुरों और राक्षसों को भेजा लेकिन बालकृष्ण ने सभी का वध कर दिया। कुछ समय बाद फिर नंदबाबा गोकुल से वृंदावन चले गए। वहां श्रीकृष्ण ने गोप और गोपियों के साथ खूब रास रचाया। फिर एक दिन कंस ने बलदेव और श्रीकृष्ण को मारने की एक नई योजना बनाई।
अक्रूरजी भगवान श्रीकृष्ण के काका थे, जो मथुरा में रहते ते। उन्हें वसुदेवजी का भाई बताया गया है। अक्रूरजी कंस के पिता उग्रसेन के दरबार में एक दरबारी के रूप में कार्य करते थे। जब कंस ने उग्रसेन को बंदी बना लिया तो अक्रूरजी की शक्तियां कमजोर हो गई।
कहते हैं कि जब नारद मुनि द्वारा कंस को यह पता चला कि कृष्ण देवकी का तथा बलराम रोहिणी का पुत्र है तो उसने अपनी योजना के तहत कंस ने अक्रूरजी के माध्यय से उनसे दोनों ही वीर बालकों को मल्ल युद्ध (पहलवानी) की एक प्रतियोगिता में आमंत्रित कर दोनों का वध करने की योजना बनाई। अक्रूरजी दोनों ही बालकों को निमंत्रण दे आए।
चाणूर और मुष्टिक मथुरा के राजा कंस के राज्य में उसके प्रमुख पहलवान थे। कंस चाहता था कि यह दोनों मिलकर दोनों बालकों का वध कर दें। चाणूर और मुष्टिक के अलावा शल तथा तोषल नामक मल्ल भी तैयार थे। साथ ही कुबलयापीड नाम के एक हाथी को विशेष प्रशिक्षण दिलाकर कृष्ण और बलराम को मार डालने के लिए रखा गया था।
श्रीकृष्ण और बलराम पहली बार ग्वालबालों के साथ मथुरा पधारे तो नगर भ्रमण के दौरान जहां दंगल हो रहा था उस रंगशाला का पता पूछते-पूछते वहां पहुंच गए। रंगशाला सजी हुई थी। विशालकाय शिव का धनुष रखा हुआ था। द्वार के पास ही हाथी भी बंधा हुआ था। रंगशाला के अखाड़े में चाणूर, मुष्टिक, शल, तोषल आदि बड़े-बड़े मल्ल दंगल के लिए उतावले खड़े थे। दंगल देखने के लिए महाराज कंस उच्च मंच पर रखे सिंहासन पर अपने मंत्रियों के साथ विराजमान था।
रंगशाला में प्रवेश करते ही सहसा ही श्रीकृष्ण से शिव का धनुष उठाकर प्रत्यंचा चढ़ाई तो वह अनायास ही टूट गया। यह देखकर उसकी सुरक्षा में लगे सैनिकों ने हमला कर दिया। दोनों भाइयों ने मिलकर सैनिकों को मार दिया। इस घटना से वहां हाहाकार मच गया तभी हाथी को छोड़ दिया गया। दोनों भाइयों ने हाथी का भी वध कर दिया। यह देखकर कंस ने चाणूर, मुष्टिक को इशारा किया। दोनों मल्ल अखाड़े में उतर गए।
चाणूर ने श्रीकृष्ण को और मुष्टिक ने बलराम जी को ललकारा। इस प्रकार मल्लयुद्ध आरम्भ हो गया। सभी प्रजा यह युद्ध देखने के लिए जुटी हुई थी। दोनों भाइयों ने दोनों का वध कर दिया तो कंस घबरा गया फिर उसने अपने अन्य मल्लों को इंगित किया। कूट, शल, तोषल आदि भी मारे गए तब कंस ने सैनिकों को आदेश दिया की इन दोनों दुष्ट बालकों को पकड़कर मथुरा से निष्कासित किया जाए और नंद को पकड़कर कारागार में डाला जाए और दुष्ट वसुदेव और उग्रसेन का बिना विलंब किए वध कर दिया जाए। लेकिन कंस के आदेश का पालन होता उससे पहले ही श्रीकृष्ण और बलराम उछलकर कंस के सम्मुख पहुंच गए और श्रीकृष्ण ने बड़े ही जोर से कंस की छाती पर एक लात मारा जिसके चलते वह नीचे गिर पड़ा। फिर श्रीकृष्ण उसके केश पकड़कर उसे खींचकर अखाड़े में ले आए। असहाय कंस चीखने पुकारने लगा लेकिन श्रीकृष्ण ने उसकी छाती पर मुष्टिक प्रहार करके उसका वध कर दिया। यह देख और सुनकर मथुरा में हर्ष व्याप्त हो गया।
कहते हैं कि कंस वध करने के बाद दोनों ही अक्रूरजी के घर गए।
कहते हैं कि श्रीकृष्ण और बलराम ने 16 वर्ष की उम्र में चाणूर और मुष्टिक जैसे खतरनाक मल्लों का वध किया था। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया था। कहते हैं कि यह मार्शल आर्ट की विद्या थी। पूर्व में इस विद्या का नाम कलारिपट्टू था। जनश्रुतियों के अनुसार श्रीकृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास उसी का एक नृत्य रूप है। कलारिपट्टू विद्या के प्रथम आचार्य श्रीकृष्ण को ही माना जाता है।
शौर्यपथ / किसी देश के इतिहास में ऐसे मौके बहुत नहीं होते, जब विकास की राह बदलने का मौका मिलता है। देश में यह ऐतिहासिक मौका ‘आत्मनिर्भर भारत’ को महत्व देने के साथ ही विकास के स्थानीयकरण पर केंद्रित है। यह भारत में आर्थिक तरक्की की राह बदलने की एक विलक्षण सोच है। स्वायत्तशासी विकास की रणनीति का मुख्य तत्व एक ऐसी आर्थिक संरचना का निर्माण है, जो देश में उपलब्ध सभी संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता के लिए सबसे मुफीद हो। इसमें अपने संसाधनों पर आधारित राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के आत्मनिर्भर विकास, सार्वजनिक व निजी उद्यमों के बीच संबंध-सहयोग और एमएसएमई व ग्रामीण अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण जैसे उपायों को रणनीति का अभिन्न अंग बनाया गया है।
आर्थिक पैकेज का यह प्रयास आर्थिक सुधारों को एक विशेष क्रम में रखने की वकालत भी करता है। यह एक ऐसी बहस है, जो 1991 के बाद से शैक्षणिक और नीतिगत स्तर पर होती रही है। राहत पैकेज का विवरण वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 13 से 17 मई तक पांच दिन में विस्तार से बताया है। प्रयास यह है कि लॉकडाउन से बाहर निकलने के साथ ही अर्थव्यवस्था के सामने जो प्रमुख चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं, उन्हें संभालने के साथ-साथ उन प्रवासियों को लाभदायक रोजगार देना, जो शहर लौटना नहीं चाहते। प्रयास यह भी है कि आपूर्ति में पैदा व्यवधानों को दूर किया जाए। यह दर्ज करना दिलचस्प है कि इस आर्थिक पैकेज कार्यक्रम के तहत पांच अलग-अलग क्षेत्रों पर गौर करना प्रस्तावित है। सबसे अव्वल है, प्रभावित लोगों को सामाजिक सुरक्षा देना। दूसरा, ऋण और नकदी प्रवाह से समर्थन करना। तीसरा, बुनियादी ढांचा निर्माण को वित्तीय सहयोग देना। चौथा, शिक्षा के क्षेत्र में तकनीक आधारित सुधार करना। पांचवां, श्रम बाजार में नीतिगत सुधार करना। खासकर कोयला, रक्षा, खनिज, नागरिक उड्डयन, अंतरिक्ष व परमाणु ऊर्जा, रियल इस्टेट आदि में श्रम सुधार।
वैश्विक स्तर पर हम पाते हैं कि भारत द्वारा उठाए गए कदम अन्य देशों से मेल खाते हैं। विशिष्ट पैकेज के आकार, दायरे और आर्थिक सुधार कुछ भिन्न हो सकते हैं, लेकिन मजबूत नीति के लिए तय क्षेत्र कमोबेश समान हैं। आर्थिक पैकेज में सरकारों ने राजकोषीय, मौद्रिक व वृहद आर्थिक मजबूत नीतियों, दवाओं की पर्याप्त आपूर्ति, उपकरण व स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे, टीका विकसित करने, बेरोजगारों, कमजोर और बीमार व्यक्तियों को राहत देने, आवश्यक आपूर्ति सुनिश्चित करने, खाद्य सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया है।
आर्थिक पैकेज के आकार को देखें, तो कुछ देशों में दिए गए पैकेज ज्यादा हैं, जैसे जापान में जो आर्थिक पैकेज दिया गया है, वह वहां की जीडीपी का 21.1 प्रतिशत है, बेल्जियम में 13.5 प्रतिशत, ईरान में 13.7 प्रतिशत, सिंगापुर में 91.3 प्रतिशत और अमेरिका में 11 प्रतिशत है। अन्य ज्यादातर विकसित या विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दिए गए आर्थिक पैकेज उनकी जीडीपी का तीन से आठ प्रतिशत तक हैं। कुछ अफ्रीकी और एशियाई देशों में इससे भी कम आर्थिक पैकेज दिया गया है। भारत में दिया गया कुल आर्थिक पैकेज जीडीपी के 11 प्रतिशत से भी ज्यादा है। दुनिया के उभरते देशों के बीच देखें, तो भारत में दिया गया पैकेज अधिक ही है। मौजूदा स्थिति में आर्थिक पैकेज के पीछे जो मूल भावना है, उसे तेजी से लागू करने की जरूरत है। संबंधित मंत्रालयों को अति-सक्रियता से काम करना होगा, सामूहिक रूप से आगे बढ़ने के लिए सबको एक साथ लाना होगा। नौकरशाही को प्रेरित करना होगा।
दो अन्य खास कारक और भी हैं। एक यह कि देश में ज्यादा पूंजी वाली दीर्घकालिक परियोजनाओं के वित्त पोषण को संस्थागत तंत्र की जरूरत है। आईडीबीआई और आईसीआईसीआई के निजीकरण के बाद से भारत ने बहुत हद तक औद्योगिक विकास के वित्त पोषण को गंवा दिया है। जिन वित्तीय संस्थाओं पर बड़ी कंपनियां निर्भर रहती हैं, वे पूंजी संग्रह में धीमी वृद्धि का सामना कर रही हैं। दूसरा कारक, आरबीआई को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वह सरकारी बैंकों (पीएसबी) के साथ मिलकर बेहतर काम करे। जो सरकारी सहायता मिली है, उसे सरकारी बैंकों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)