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दुर्ग / शौर्यपथ /
एक भावनात्मक पल... जब बरसों की सेवा यात्रा एक पड़ाव पर थमती है। जब साथियों का साथ छूटता है और ऑफिस के गलियारों में स्मृतियों की गूंज रह जाती है। कुछ ऐसा ही दृश्य सोमवार को दुर्ग नगर निगम मुख्यालय सभागार में नजर आया, जहां 62 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुके पांच समर्पित कर्मचारियों को निगम परिवार ने सम्मान के साथ विदाई दी।
समारोह में इन कर्मयोगियों को शॉल, श्रीफल और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। महात्मा गांधी स्कूल के प्रभारी प्राचार्य दिनेश अग्रवाल, वाहन चालक मानिकपुरी, सफाई कर्मी खिलावन तिरंगा, भृत्य मंगलीन गोंड जैसे समर्पित कर्मचारियों ने मंच से अपने सेवा अनुभव साझा करते हुए नम आंखों से कहा — “हमने प्रयास किया कि अपने कर्तव्यों को पूरी ईमानदारी से निभाएं, और आज हम गर्व से कह सकते हैं कि हम निगम की सेवा में अपना सर्वस्व दे पाए।”
इस अवसर पर महापौर श्रीमती अलका बाघमार, सभापति श्याम शर्मा, एमआईसी सदस्यगण और वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित रहे। महापौर बाघमार ने भावुक शब्दों में कहा —
“आज हमारे निगम परिवार के पांच सदस्य सेवा-काल पूर्ण कर सेवानिवृत्त हो रहे हैं। आपने जीवन का कीमती समय सेवा में अर्पित किया, पारिवारिक दायित्वों को पीछे रखकर ईमानदारी से कार्य किया। आपका समर्पण अनुकरणीय है।”
महापौर ने आश्वस्त किया कि सभी देयकों का भुगतान तत्काल किया जा रहा है और पेंशन प्रक्रिया भी शीघ्र पूर्ण की जाएगी। उन्होंने कहा, "आपका अनुभव संस्था की थाती है, आप जब चाहें निगम परिवार का हिस्सा बने रह सकते हैं।”
सभा को संबोधित करते हुए सभापति श्याम शर्मा ने कहा, “अब आपके जीवन का वह समय है, जिसे आप अपने परिवार को समर्पित करें, अपने दायित्वों को पूरा करते हुए सुखमय जीवन व्यतीत करें।” स्वास्थ्य अधिकारी धर्मेंद्र मिश्रा ने सेवानिवृत्त कर्मचारियों के परिजनों की उपस्थिति पर आभार जताया।
स्मृतियों की भीनी खुशबू लिए यह विदाई सिर्फ औपचारिक नहीं थी, यह एक संस्था और उसके कर्मठ सदस्यों के बीच वर्षों के रिश्ते का संजीव दस्तावेज थी।
यह क्षण केवल कागज पर दर्ज एक तारीख नहीं, बल्कि उन भावनाओं का प्रतीक था जो बरसों की साझा यात्राओं, हँसी-ठिठोली, तनावपूर्ण जिम्मेदारियों और बंधुत्व से गूंथे हुए थे।
सभा में निगम के एमआइसी सदस्यगण, अधिकारीगण, और कर्मचारी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। हर चेहरे पर विदाई की गंभीरता और सम्मान का भाव स्पष्ट था।
कर्मचारी सेवानिवृत्त होते हैं, पर उनकी सेवाएं और स्मृतियाँ संस्थान की आत्मा में बस जाती हैं। आज भी एक यही भाव हर उपस्थिति की आंखों में स्पष्ट था— "हमने साथ बिताए दिन नहीं भूले हैं, और कभी नहीं भूलेंगे।”
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