दुर्ग नगर निगम बेहाल: विकास ठप, सफाई बदहाल, जनता अब अपने ही फैसलों पर पछता रही
दुर्ग। शौर्यपथ।
दुर्ग नगर निगम की मौजूदा हालात ने नगरवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या उन्होंने महापौर चुनकर कोई भारी भूल कर दी? प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के तहत जब दुर्ग की जनता ने महापौर के रूप में श्रीमती अलका बाघमार को चुना था, तब उम्मीदें थीं कि शहर का कायाकल्प होगा। लेकिन आज वही जनता खुलेआम कह रही है — "हमने गलत चुना!"
शहर में अव्यवस्था इस कदर हावी है कि सड़कों पर मवेशियों की भरमार दुर्घटनाओं की खुली दावत दे रही है, तो फुटपाथ और सड़क किनारे अतिक्रमण ने आमजन का चलना तक दूभर कर दिया है। निगम प्रशासन कार्रवाई के दावे जरूर कर रहा है, लेकिन जमीनी सच्चाई इसके उलट है। अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई कहीं सांकेतिक बनकर रह गई है, तो कहीं सिर्फ चुनिंदा वर्गों पर टिकी दिखाई देती है।
जनता त्रस्त, नालियां जाम, लाइटें गुल, लेकिन निगम मौन
बरसात की पहली ही फुहार ने निगम की सफाई व्यवस्था की पोल खोल दी। गली-मोहल्लों की नालियां जाम हैं, कीचड़ और बदबू से वातावरण प्रदूषित है, और गलियों में लगी स्ट्रीट लाइटें महीनों से बुझी पड़ी हैं। जनता त्राहिमाम कर रही है, लेकिन निगम कार्यालय में मानो सबकुछ सामान्य है।
विकास सिर्फ बैनरों में, जमीनी हकीकत शून्य
शहर में विकास कार्यों का हाल इतना खराब है कि अब वह सिर्फ पोस्टर और प्रचार सामग्री तक सीमित रह गया है। ना नई योजनाएं धरातल पर उतरी हैं, ना ही ठेकेदारों को पुराने कार्यों का भुगतान किया गया है। महीनों से रुके भुगतान से निर्माण कार्य ठप हैं।
राजेंद्र प्रसाद चौक की गुमठी विवाद से लेकर एलआईसी के सामने निगम गुमठियों के नोटिस तक, हर मुद्दे में निगम की कार्यशैली सवालों के घेरे में है। निगम में शासन कर रही पार्टी के पार्षद भी गुटों में बंटे नजर आ रहे हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि आंतरिक राजनीति नगर विकास के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा बन गई है।
जनता की उम्मीदें टूटीं, महापौर को ठहरा रही है जिम्मेदार
प्रत्यक्ष प्रणाली की सबसे बड़ी खूबी और कमजोरी यही है कि जनता सीधे अपने मुखिया का चुनाव करती है — और जब उस मुखिया से उम्मीदें टूटती हैं, तो आक्रोश भी सीधे उसी के प्रति फूटता है। आज दुर्ग शहर की जनता यह कहने में संकोच नहीं कर रही कि नगर सरकार की बदहाली के लिए महापौर अलका बाघमार ही जिम्मेदार हैं।
विधानसभा चुनाव से पहले बिगड़ता जनमत भाजपा के लिए खतरे की घंटी
यदि यही स्थिति रही तो आने वाले विधानसभा चुनावों में नगर क्षेत्र की नाराजगी भाजपा के लिए एक बड़ा संकट बन सकती है। लोग अपने फैसलों पर पछता रहे हैं, और लोकतंत्र में जब जनता पछताती है तो उसका असर सीधे चुनाव में दिखता है।
फिलहाल शहर के हालात यही दर्शा रहे हैं —
सफाई लापता, विकास गायब, और जवाबदेही शून्य।