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व्रत त्यौहार /शौर्यपथ / भगवान शिव की पूजा के लिए हर माह की त्रयोदशी तिथि समर्पित होती है. त्रयोदशी तिथि को प्रदोष का व्रत रखकर भक्त भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं. शिव पुराण और स्कंद पुराण में प्रदोष व्रत की महिमा का वर्णन किया गया है. चैत्र माह की शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 21 अप्रैल रविवार को है. रविवार के दिन होने के कारण यह रवि प्रदोष व्रत कहलाता है. रवि प्रदोष व्रत को बहुत खास माना जाता है. मान्यता है कि रवि प्रदोष आरोग्य और दीर्घायु प्रदान करने वाला होता है. रवि प्रदोष को सूर्य उपासना का भी बहुत महत्व है. आइए जानते हैं रवि प्रदोष व्रत की पूजा विधि और इस व्रत के दिन किन चीजों से लगाना चाहिए भगवान शिव को भोग.
रवि प्रदोष व्रत की पूजा विधि और भोग
रवि प्रदोष व्रत के दिन सूर्य उपासना का भी बहुत महत्व है. इस दिन सुबह जल्दी उठने के बाद स्नान कर भगवान सूर्य को नमस्कार करें. इसके बाद लाल रंग के आसन पर पूर्व की दिशा की ओर मुख करके बैठें और तांबे के लोटे में जल भरकर रखें. तांबे के दीये में गाय का घी डालकर कलेवा की बत्ती से दीया जलाएं और सूर्य स्रेत का पाठ करें. पाठ करने के बाद तांबे के लोटे से सूर्य भगवान को अर्घ्य दें. संध्या के समय प्रदोषकाल में भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करें. सबसे पहले पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करें. भगवान शिव को साबुत चावल की खीर, हलवा या बेल के फल का भोग लगाएं. शिव चालीसा का पाठ करें. शिव भगवान अपने प्रिय भोग और शिव चालीसा से परम प्रसन्न होते हैं.
रवि प्रदोष व्रत पर इनका रखें ध्यान
रवि प्रदोष व्रत पर फलाहार करना चाहिए. पूरे दिन उपवास रखने के बाद सूर्य अस्त होने पर स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करना चाहिएय इस व्रत के दिन घर पर सात्विक भोजन बनाया जाता है.
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