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दुर्ग / शौर्यपथ/ नगरीय विकास कार्यों को गति देने के उद्देश्य से वार्ड 43 कसारिडीह और वार्ड 04 गयानगर में नगर निगम द्वारा कराए जा रहे महत्वपूर्ण निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया गया। इस दौरान कलवर्ट एवं सर्वमांगलिक भवन जैसे बहुप्रतीक्षित कार्यों में गुणवत्ता और समयबद्धता सुनिश्चित करने निर्देश भी दिए गए। निरीक्षण में नगर निगम के इंजीनियर, आयुक्त सुमित अग्रवाल समेत कई पार्षद और जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।
हालांकि शहरवासियों के हित में जारी इन विकास कार्यों में एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और राजनीतिक विसंगति भी उभरकर सामने आई—नगर निगम और स्थानीय विधायक के बीच संवाद और तालमेल की स्पष्ट कमी।
दुर्ग विधानसभा से भाजपा विधायक श्री गजेन्द्र यादव नगरीय विकास को लेकर लगातार सक्रिय हैं। हाल ही में उन्होंने कई निर्माण कार्यों का निरीक्षण भी किया, परंतु इन कार्यक्रमों से जुड़ी कोई आधिकारिक जानकारी नगर निगम की ओर से जारी नहीं की गई।
दूसरी ओर, जहां नगर निगम की ओर से नियमित रूप से प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से हर छोटी-बड़ी गतिविधि की जानकारी मीडिया और जनता तक पहुंचाई जाती है, वहीं विधायक के जनहित कार्यों की जानकारी आमजन और मीडिया तक नहीं पहुंच पाती। जानकारों का मानना है कि यह स्थिति कहीं न कहीं विधायक कार्यालय की जनसंपर्क व्यवस्था में मौजूद सुस्ती की ओर भी संकेत करती है।
प्रोटोकॉल के अनुसार, विधायक के पास एक जनसंपर्क टीम होती है जो उनके कार्यों और कार्यक्रमों की जानकारी समय पर मीडिया तक पहुंचाने की जिम्मेदार होती है। परंतु लगातार यह देखने में आ रहा है कि विधायक के द्वारा किए जा रहे कार्यों का प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है। सवाल यह भी उठता है कि क्या यह लापरवाही मात्र अनदेखी है या जानबूझकर किसी राजनीतिक रणनीति के तहत छवि को कमजोर करने का प्रयास?
यह पहली बार नहीं है जब महापौर और विधायक के बीच राजनीतिक दूरी चर्चा का विषय बनी हो। पूर्व में भी कई राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने इनके बीच मतभेद और समन्वयहीनता पर रिपोर्ट प्रकाशित की है। एक ही दल की सरकार होने के बावजूद अगर दोनों प्रतिनिधि एक-दूसरे की उपस्थिति को नज़रअंदाज़ करें या संवादहीन बने रहें, तो इसका सीधा असर शहर के विकास और प्रशासनिक गति पर पड़ता है।
विशेषज्ञों की राय में, विकास का काम राजनीतिक सीमाओं से परे होना चाहिए। दोनों पदाधिकारी यदि समन्वय स्थापित कर, पारदर्शिता और जन संवाद को प्राथमिकता दें, तो दुर्ग शहर ना केवल बेहतर सुविधाओं से सुसज्जित होगा, बल्कि राज्य में आदर्श नगरीय मॉडल के रूप में स्थापित हो सकता है।
अब सवाल जनता के मन में है— जब उन्होंने दोनों जनप्रतिनिधियों को एकजुटता और विकास की उम्मीद से जनादेश दिया, तो फिर यह संवादहीनता क्यों? क्या इसके पीछे प्रशासनिक लापरवाही है या फिर राजनीतिक असहजता?
शहर के लिए यह समय चेतावनी का है—अगर संवाद बहाल नहीं हुआ, तो विकास की रफ्तार थमती ही जाएगी।
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